चोटी की पकड़–9

इसी समय लार्ड कर्जन ने बंग-भंग किया। 


राजनीति के समर्थ आलोचकों ने निश्चय किया कि इसका परिणाम बंगाल के लिए अनर्थकर है।

 बंगाल के स्थायी बंदोबस्त की जड़ मारने के लिए यह चाल चली गई है। 

यद्यपि लार्ड कर्जन का मूँछ मुड़ानेवाला फैशन बंगाल में जोरों से चल गया था-मिलनेवाले कर्मचारी और जमींदार लाट साहब को खुश करने के लिए दाढ़ी-मूँछों से सफाचट हो रहे थे, 

फिर भी बंगभंगवाला धक्का सँभाले न सँभला। 

वे समझे कि चालाक अंगरेज किसी रोज उन्हें उनके अधिकार से उखाड़कर दम लेंगे।

 चिरस्थायी स्वत्व के मालिक बड़े-बड़े जमींदार ही नहीं, मध्य वित्त साधारण जन भी थे।

 इसलिए यह विभाजन की आग छोटे-बड़े सभी के दिलों में एक साथ जल उठी। 

कवियों ने सहयोगपूर्वक देश-प्रेम के गीत रचने शुरू किए। संवाद-पत्र प्रकाश्य और गुप्त रूप से उत्तेजना फैलाने लगे। 

जगह-जगह गुप्त बैठकें होने लगीं। कामयाबी के लिए विधेय अविधेय तरीके अख्तियार किए जाने लगे। 

संघ-बद्ध होकर विद्यार्थी गीत गाते हुए लोगों को उत्साहित करने लगे।

 अंग्रेजों के किए अपमान के जवाब में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रतिज्ञाएँ हुईं, लोगों ने खरीदना छोड़ा।

 साथ ही स्वदेशी के प्रचार के कार्य भी परिणत किए जाने लगे। गाँव-गाँव में इसके केंद्र खोले गए।

 कार्यकर्ता उत्साह से नयी काया में जान फूँकने लगे।

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